बित्ता भर भुइयां

मे ह एक बीता भुइयां बर मरत हावव का, मे ह काबर अइसे करवाहूं भई जावा उही ल पूछ मे हा तो काही नइ केहे अवं। कइसे के विष्णु तोर मालिक ह काय काहत हे, सुनत हावच न, अरे ददा हो। मालिक के केहे बिना मेहा कइसे कर देहूं गा। विष्णु तोला मेहा कब दर्रा ल ढेलवानी बर केहे हव के, वा हे नइ केहेच त तोर टुरा ह तो चार दिन पहिली मोला ले बता के आय रिहिस हावय। मैं ह तभे तो कहे हावंव गा।
बिहारी बेटा ये साल ढेलवानी देवा देगा थोर बहुत राहेर ल बो देतेन त दार खाय बर मिल जातीस गा, एसो तो दार के भाव आसमान छूवत हे। तीन जुवर के दार खवइया मन दिन म एक बेर खावत हाबे, शक्कर ह घलो झन पूछ काहत हे। जब तक बेरा किसान ह काही ल नई उपजाही तब तक महंगाई ह बदले करही फेर आज के लइका मन मेहनत करे म जांगर गरू समझत हावय ददा। बनिहार नइ मिलत हावय बाबू मेहर अब काय करंव सब रोजगार गारंटी म जाथे।
गुड्डू अऊ मेहा गरवा बइला के जतन कर देबो तोर दाई ह अलवा झलवा रांध दीही बेटा बबा-बबा तोला शीतला चौरा म रमायण पढ़े बर बलावत हावय गो, ह बेटा चल न जाहू बेरा तो होगे हावय संगवारी मन सकलागे का रे, ह बबा चल महूं तोर संग जाहू गो, रमायन सुने के मन लागथे, हां, चल न बेटा। संगी मन ल राम-राम ग, जय जोहार समारू… समारू आज कइसे बेरा कर डरेगा, अरे लइका मन ढेलवानी बर काहत रहेंव गा। थोर बहुत दार हो जही त बियास बर नइ लागही एसो के दिन म 100 रुपिया किलो हावय आने वाला साल म 200 झन हो जय, सब जुरमिल के रमाएन पढ़े लगीस।
दर्रा खेत म गा बड़े बाबू मन ढेलवानी देहे गा त अपन मेड़ ल एक बीता खाच के जम्मो माटी ल मोर कोती फेंक देहे गा, पउरो ओइसने करे रिहिस हाबय त चल झंझट भर होही एक बित्ता भुइया बर काय झगरा करहूं कइके नइ केहेवगा, फेर ऐसो ओइसने करबे ददा, मेह कइसे करवगा तूंही मन रद्दा बतावव बबा। तेहा ह जोहन बिहना ले 10, 12 झनप सियान मन ल धर के देखा के आबे हमू मन जाबो फेर तोर रद्दा ल बनाबो जी। देख गिरधारी मण्डल के चाल ल पउर भाठा ल छेकत रिहिस हाबय। मोर लगानी आय कइके जेला ओकर ददा हा चरागन बर छोड़े हावय। कहूं पंचायत म ओकर लिखे कागज ह नइ रइतिस त दस अकड़ भुइया ल धनहा बना देतीच अब बर छोटे भाई के खेत ल चपलवावत हावय।
ममता के दाई मुखारी दे तो तरिया जाहूं, अइस आगेवं ममता के बाबू सियान मन आय रिहिस का, हहो संझा बइठका होही, ओकरे मन के ऊपर आशा हाबय, ए लेवा मुखारी झटकन नहा के आवा संगे म बइठ के सब्बो झन खाबो। संझा कन गंजन करा जाय ल परही सुरता करके हाक ल देवाय बर हावय।
कोतवालिन जल्दी भात ल हेर तो खा के हाका पारे बर जाहू, फेर मेह जा के बिलम जथंव ताहा ले ते हा खिसियावच खा लेथव, ताहा तहू ह मांज धो के सुभित्ता हो जाबे। बइठका म बात होय ले लगगे।
बात अइसन ए ददा हो बड़का भैया ह अपन खेत के मेड़ ल एक बीता खरचा के माटी ल मोर पार फेंक दे हावय कालीच मे ह देखे हावंव पउरो अइसने करे रहीस हावय फेर मे ह काही नई केहेंव। कइसे जी मण्डल तोर माई ह सिरतोन काहत हावय धन नहीं। मे नइ जानव भई मे ह तो गे नइ अव मोर नौकर ह करे होही। तोर केहे बिना नौकर ह कइसे करही। वा त मेह एक बीता भुइयां बर मरत हावव का, मेह काबर अइसे करवाहूं भई जावा उही ल पूछ मेहा तो काही नइ केहे अवं। कइसे के विष्णु तोर मालिक ह काय काहत हे, सुनत हावच न, अरे ददा हो मालिक के केहे बिना मेहा कइसे कर दहूं गा। विष्णु तोला मेहा कब दर्रा ल ढेलवानी बर केहे हव के, वा हे नइ केहेच त तोर टुरा ह तो चार दिन पहिली मोला ले बता के आय रिहिस हावय। मैं ह तभे तो कहे हावंवगा।
देख मण्डल तोर टुरा ह थोकन पढ़ का गे हे, अब्बड़ होशियारी अउ नेतागिरी शुरू कर देहे, ओकर लगाम ल थोकन कसके रख, पउर भाटा ल जोते के शुरू कर डरे रहिस, एसो बर ए उदीम शुरू कर दीच, कोन जनी अउ काय करही ते उही जानय भई। सबे मण्डल अउ ओकर टूरा ल गारी दे के अपन-अपन ले शुरू कर दीच। चला सब बतावा गा एकर मन के का करे जाय, एक झन कथे 5000 डांड़ दीही मण्डल ताय का होही, सबो कइथे ह बने तो काहत हावय अउ माटी ल फरे अपन कोती नान ही। मण्डल के टुरा ह सुन के आगी कस घुस्सा म बरे लगे, तू मन पंच सरपंच काय अब बताव तो कोनो पढ़े-लिखे हावव अंगूठा छाप हो। अरे खेत के मेढ़ म फोकट जमीन जाथस। अरे ओमे धान होही, सब अपन खेत के मेड़ ल हटा दव। मेह सरपंच के फैसला ल मानहूं तुंहर अंगूठा छाप के नियाव म काय ताकत हावय, तोर टुरा ल चुप करादे मण्डल नहीं त हीं मेर ओला दू चार हाथ पर जही त ओकर जम्मो पढ़ई ह याद आ जाही, बिहारी के बेटा ह घलो तो पढ़े-लिखे हावय ओकर ले जादा, ओहर तो कांही नइ काहय बाप के आगू म अइसन पढ़े लिखे ले अनपढ़ ह बने हावय।
देखे बिहारी अब हमन अनपढ़ होगेन जी सरपंच के फैसला ल मानही डउकी सरपंच, डउका हा राज करथे। ओकर एक टुरा चमचा, दोबला गुरूजी 15 हजार तनखा दू ठन चार चकिया देहा ह दो रूपया के चाउर खाथे अउ इहू म ल मिल हावय नइ काहत हावन तेकर मतलब काय आय पंच सरपंच सचिव अउ चमचा मन के तो राज होगे हे न, अब हमू मन पढ़थन बाबू पेपर, रेडिया म समाचार सुनथन चार साल ले भुकर-भुकर के खाय हावव न तेला भिभौरी कस मार परही न त सबो ल उछरहा, तेहा ह ए जगा ले जा तोर ददा अभी जीतय हावय, चल मण्डल ते हा गोठिया काय काहत हावच तेन ल धन तुहु ह सरपंच अउ पंच के बात ल मानबे नहीं ददा तूमन सिरतो काहत हावव गा तूहर बात ल मानहू ददा। जइसे तूमन ह बनादव गा।
बाबूलाल आय हावय रे भुनेसर हहो आय आवय। कइसे बाबूलाल नरवा के पानी ल तोर टुरा ह मुड़ी म बोहो के लेगही धन तेहा के, तोरा टुरा ह सोचत होही, फोकट जमीन पड़े हावय हर साल एक-एक हाथ चपले ले धान ह मोर बाढ़ही कइसे आय नहीं। गलती तो कर डरे हावन ददा, त तेहा तोर खेत के मेड़ के तीरे-तीर बीस-पच्चीस ठन रूख लगाबे अउ एक साल बाद पंच, सरपंच करा तेहा बताबे जी ताहन पेड़ के लगाय ले नरवा ह तोर खेत डाहन नइ जावय। मंजूर हावय, ह मंजूर हावय गा ददा हो।
आज सबो सुनव पंच मन सरपंच अउ सचिव ल बता दुहू काली कुन दिन मान अपन खाता बही ल धर के आही महु मन हिसाब लेबो कइसे गा, हहो, हहो (सबो चिचियाय लगीस) ओ दिन टीबी म भिभौरी के देखे हावन न, अउ मास्टर ल घलो बताहू आंखी म तोपा बांध के सर्वे करे हावय न तेला बताहू ओखर चेथी के आंखी ल आघू डाहर नानबो।
बिहारी पंचायती राज ल गांव के विकास बर बनइस त पंच सरपंच मन भइगे अपनेच बिकास करत हावय, अब तो ददा इहू ह रोजगार होगे बबा। गंज न हाक ल पार देबे काली काम बुता बंद दाई माई सब्बा पंचायत भवन म सकलाही, हहो बिहारी कका बने काहत हावच बिनहा कुन हाक पार दुहू।द्ध जलव बुढ़वा मन अप्पढ़ आय धन जवान मन तेला काली बताबो। (गांव भर के मनखे मन ग्यारा बजे गुड़ी म सकलइस) गुरूजी ल स्कूल ले बला के नानीच, कइसे गुरुजी तोला दिखथे धन नइ दिखय गरीब मन करा कारड नहीं, अउ मण्डल बड़े गुरूजी मन ल पोठहा मन ल कारड देवाय हावस। सरपंच ह किहिस हावय ददा त लिखे हावंव ह तब जेल म जाय के तियारी कर ले बाबू, कइसे सरपंच वा हमर मन ताय तेहा झन गोठिया रे ओर तोला नइ देयन तोर बाई ल ते हावन ते हा चुपे बइठे रा, अब्बड़ चार साल ले सियानी करे हावस बाबू कइसे बहुरिया तोला इही खातिर बर जिताय हावन वो बने पढ़े-लिखे हावय कइके तोला सरपंच बनाय हावन त तेहा भइगे दस्कत भरे करे ल सीखे हावच, हमन नइ पढ़े हावन फेर नित-अनित ल देख सुन के काम करथन, चार दिन पहिली टीबी म देखे होबे भिभौरी कांड ल त तेहा चुप्पे हिसाब किताब दे दे, अउ जतका 2 रुपया किलो कारड वाला हावय न तेमा हमन काहत हन तेकर-तेकर नाम ल काट दे। अउ ये सब्बो काम ह दू दिन म नइ होइच न त देख ले कइसे दाई-माई मन घलो गोठिया न भई चुप झन राहव। तब कमला ह कइथे बने तो काहत हावच बबा हव सब झन जाबो कलेक्टर मेरा, ए मन ल सबक सिखाबो, निराश्रित घलो के नाम ल बदले ल परही। (सरपंच, सचिव, खुसुर फुसुर करे लगीस)।
गुरूजी चल अब हमर मन कोती ले चिट्ठी लिख ओमे सबो झन दसकत करके जाहू रे। अउ हरेली सहेली मन सुनौ पइसा ल तो डकार डरेव अपन अपन घर ले पइस निकाल के पेड़ लगाहूं अषाढ़ म अउ रूंधहूं पेड़ दो बछदर के जब हो जही तब पंचायत ल सउपहू, नहीं तो तुहू मनप जान लव काय होही तेला, प्रौढ़ शिक्षा म पढ़े के छग के समाचार सुने के अब्बड फायदा होइस।
जोहन ह बइठक नइ बलातीच त ये भेद ह नइ खुलतीच अरे बिता भर भुइया खातिर आज भाइ ह भाइ के जान लेवत हावय, हो सकत रिहिस हे ये बात ह सियनहा मन करा नइ आतिच दूनो भाइ लड़तीच अउ मरतीच, ये सब फोक्ट ए ददा, पसीना ओकार के कमावा अउ सुख भर खावा जी काबर ककरो हिजगा पारी चोरी लबारी करथव हमर गांव के अतको सुग्घर नाव के अंजोर ल बगरावा, सियनहा मन अपन-अपन लोग लइका मन ल सिखोवा नहीं त मण्डल कस टुरा ताव बताय के शुरू कर दिही, लिखा गे गुरुजी नान दसकत करबो, स्याही नानन दे न बबबा, पेन दे गुरुजी दसकत भर करे ल नइ आवय सरपंचीन असन नियाव घलो जानथन। सब्बो एक-एक करके दसकत करे के शुरू कर दीच। सरपंचीन ह कथे बबा हमन ल दू दिन के मोहलत दे दे भई गलती होगे, एला सुधारहू, मोर आंखी उघरगे अब मेहा ककरो बुध नइ मानव। देख बेटी नारी ह दूनो कुल ल तारथे वो, झांसी के रानी, इंदिरा गांधी एमन तो देश ल चलस बेटी त तेहा ह नानकन गांव ल नइ चलाय सकबे ओ, हमन तो तोर संग म हाबन, दू चार झन के नेतागिरी ल झन डर्रा सब गांव मनखे मन तोरे कोती रही, फेर तेहा जइसे-जइसे योजना आथे तइसने काम करबे बेटी, सरकार पइसा नइ दीही तभो ले हमन गांव खातिर अपन पछीना ल देबो बेटी। चार ठन दरिया अउ सड़क ल गांव भर के मन अपन पछीना के दान म बनाय हे बेटी।
गीता चंद्राकर
कौडिया पलारी

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2 Thoughts to “बित्ता भर भुइयां”

  1. शकुन्तला शर्मा

    ” बित्ता भर भुइयॉ ” म गीता बहिनी हर गॉव के समस्या ल टकटक ले देखाए के कोशिश करे हावय । अइसे वर्णन करे हे के ऑखी के आघू म दृश्य दिखे लागथे । गीता ल बधाई । ” गुरतुर गोठ ” म एक से एक बढिया साहित्यकार संग भेंट होवत हे अऊ माध्यम बने हे सञ्जीव तिवारी , कोटिशः बधाई । सञ्जीव के तपस्या के रुख हर अब फरे लागिस । कई बरिस ले खातू-माटी डारत हे , तेकर फर ह अब दिखत हे। भगवान करय हमर ” गुरतुर गोठ ” हर सरी दुनियॉ म बगरय ।

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